गर्मी के मौसम के रोग एवं उपचार

ग्रीष्म काल के मौसम में ताप के अधिक होने से लू लगती है। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य द्वारा प्रवाहित उष्मा से वातावरण का ताप इतना अधिक बढ़ जाता है कि यदि सावधानियां नहीं रखी गयी तो मनुष्य सन-बर्न या सन-स्ट्रोक के आक्रमण से बच नहीं सकता।
सूर्य का प्रभाव उन पर ज्यादा पड़ता है जिनका सीधा संपर्क सूर्य की किरणों से होता है या जो सारा दिन खेतों में काम करते हैं या टीन या खपरैल की छत वाले मकान में रहते हैं। लेकिन कुछ लोग धीरे-धीरे इसे सहने के आदी हो जाते हैं परंतु जो इसके अभ्यस्त नहीं होते यदि उनका संपर्क सूर्य की तेज किरणों से होता है तो उनके शरीर पर गुलाबी रंग के चकत्ते उभर आते हैं जिनमें खुजली भी होती है।
अधिक देर तक धूप में रहने से फफोले भी पड़ सकते हैं। इसके साथ-साथ घबराहट, सिर में दर्द, चक्कर आना, उल्टी-सी लगना आदि लक्षण देखने को मिलते हैं। अधिक पसीना निकलने से निर्जलीकरण की अवस्था भी हो सकती है तथा ज्वर की भी संभावना हो सकती है।
लू लगने पर शीतल उपचार करना चाहिए। रोगी को पूरा विश्राम कराना चाहिए। शीतल व हवादार कमरे में रखना चाहिए। रोगी को शीतल पेय देना चाहिए जैसे नीबू का रस पानी में मिलाकर देना चाहिए। आम को उबालकर उसका गूदा पूरे शरीर पर मलना चाहिए। आम का शर्बत देने से भी लाभ मिलता है। सौंफ, खरबूजे और तरबूजे का बीज, गुलाब की पंखुडिय़ां, काली मिर्च को पीसकर उसमें मिश्री या चीनी मिलाकर देने से मरीज को राहत मिलती है। यदि इससे भी आराम न मिले तो तुरंत पास के अस्पताल में ले जाना चाहिए जिससे उसकी ड्रिप वगैरह लगाकर तुरंत उपयुक्त चिकित्सा की जा सके।
जब कभी कोई व्यक्ति आग से, गर्म पानी से या उसके भाप से, किसी रसायन से, बिजली से या रेडिएशन आदि किसी कारण से भी जलता है तो उसकी तीन अवस्थाओं को ध्यान में रखकर उसकी चिकित्सा की जाती है।
प्रथमावस्था : जिसमें शरीर पर बिना किसी लाली के फफोले पड़ते हैं। उसकी त्वचा का केवल ऊपरी भाग ही प्रभाव में आता है यह प्रथमावस्था कहलाती है। द्वितीयावस्था : इसमें त्वचा का दूसरा स्तर भी प्रभाव में आ जाता है जिसके कारण शरीर पर लाली के साथ फफोले पड़ते हैं। तृतीयावस्था :इस अवस्था में त्वचा का संपूर्ण भाग जल जाता है तो इसे तृतीयावस्था कहते हैं।
जलने के तुरंत बाद शरीर के जले भाग को ठंडे पानी में आधे घंटे तक रखें जिससे ऊतकों के नष्ट होने की संभावना नहीं होती। प्रथम अवस्था में चिकित्सा की आवश्यकता नहीं रहती है।
द्वितीयावस्था : जलने पर उसे पानी से धोयें। फफोले पड़ जाने पर उसे संक्रमण रहित सुई से फोड़ दें और जली त्वचा को न हटायें। उसके ऊपर स्टेराइल गॉज से ढककर पट्टी बांध दें फिर अगले दिन  पट्टी बदल दें। इससे घाव ठीक हो जायेगा।
तृतीयावस्था : जले को साफ न करें। उसके ऊपर पाउडर छिड़क दें परंतु कोई भी दवा न दें। जितनी जल्दी हो सके रोगी को अस्पताल भेज देना चाहिए।
इसमें कुछ बातों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। जैसे इन्फेक्शन से बचना चाहिए। सभी घावों में 24 घंटों के अंदर एटीएस का इंजेक्शन दे देना चाहिए। रोगी को टब-बॉथ कराना चाहिए जो रोगी की पीड़ा को भी कम करता है और घावों को भी सुखाता है। जी वायलेट, बरनॉल या नारियल का तेल भी लगा सकते हैं। आग से जलने पर तुरंत निथरे हुए चूने के पानी में नारियल का तेल मिलाकर लगाने से लाभ मिलता है। चाय वगैरह से आप जल जायें तो तुरंत उस स्थान को ठंडे पानी से धो कर ग्लिसरीन लगा लेने से राहत मिलती है।

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